और सब भूल गए... और सब भूल गए हर्फ-ए-सदाक़त लिखना; रह गया काम हमारा ही बगावत लिखना; न सिले की न सताइश की तमन्ना हमको; हक में लोगों के हमारी तो है आदत लिखना; हम ने तो भूलके भी शह का कसीदा न लिखा; शायद आया इसी खूबी की बदौलत लिखना; दह्र के ग़म से हुआ रब्त तो हम भूल गए; सर्व-क़ामत की जवानी को क़यामत लिखना; कुछ भी कहते हैं कहें शह के मुसाहिब जालिब ; रंग रखना यही अपना इसी सूरत लिखना।

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