करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे... करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे; गज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे; वो ख़ार-ख़ार है शाख-ए-गुलाब की मानिंद; मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे; ये लोग तज़किरे करते हैं अपने प्यारों के; मैं किससे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे; जो हमसफ़र सरे मंज़िल बिछड़ रहा है फ़राज़ ; अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे।

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