कलकत्ते का जो ज़िक्र... कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं; इक तीर मेरे सीने में मारा के हाये हाये; वो सब्ज़ा ज़ार हाये मुतर्रा के है ग़ज़ब; वो नाज़नीं बुतान-ए-ख़ुदआरा के हाये हाये; सब्रआज़्मा वो उन की निगाहें के हफ़ नज़र; ताक़तरूबा वो उन का इशारा के हाये हाये; वो मेवा हाये ताज़ा-ए-शीरीं के वाह वाह; वो बादा हाये नाब-ए-गवारा के हाये हाये।

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