कोई कैसा हम सफर है... कोई कैसा हम सफर है ये अभी से मत बताओ; अभी क्या पता किसी का कि चली नहीं है नाव; ये ज़रूरी तो नहीं है कि सदा रहे मरासिम; ये सफर की दोस्ती है इसे रोग मत बनाओ; मेरे चारागर बहुत हैं ये खलिश मगर है दिल में; कोई ऐसा हो कि जिस को हों अज़ीज़ मेरे घाव; तुम्हें आईना गिरी में है बहुत कमाल हासिल; मेरा दिल है किरच किरच इसे जोड़ के दिखाओ; मुझे क्या पड़ी है साजिद के पराई आग मांगू; मैं ग़ज़ल का आदमी हूँ मेरे अपने हैं अलाव।

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