कोई सूरत निकलती... कोई सूरत निकलती क्यों नहीं है; यहाँ हालत बदलती क्यों नहीं है; ये बुझता क्यों नहीं है उनका सूरज; हमारी शमा जलती क्यों नहीं है; अगर हम झेल ही बैठे हैं इसको; तो फिर ये रात ढलती क्यों नहीं है; मोहब्बत सिर को चढ़ जाती है अक्सर; मेरे दिल में मचलती क्यों नहीं है।

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