ख़ातिर से तेरी याद को... ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते; सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते; आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते; अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते; किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल; तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते; परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले; क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते; हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना; दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते; दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त; हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते।

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