ख़ून बर कर मुनासिब... ख़ून बर कर मुनासिब नहीं दिल बहे; दिल नहीं मानता कौन दिल से कहे; तेरी दुनिया में आए बहुत दिन रहे; सुख ये पाया कि हम ने बहुत दुख सहे; बुलबुलें गुल के आँसू नहीं चाटतीं; उन को अपनी ही मरग़ूब हैं चहचहे; आलम-ए-नज़ा में सुन रहा हूँ में क्या; ये अज़ीज़ों की चीख़ें हैं कया क़हक़हे; इस नए हुस्न की भी अदाओं पे हम; मर मिटेंगे ब-शर्ते-के ज़िंदा रहे; तुम हफ़ीज अब घिसटने की मंज़िल में हो; दौर-ए-अय्याम पहिया है ग़म हैं रहे।

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