ख़ून से जब जला दिया... ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ; फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ; महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गई; फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ; मुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ है; मेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआ; दर्द की कायनात में मुझ से भी रौशनी रही; वैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ; सब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गई; और मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ।

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