ज़ंजीर से उठती है सदा सहमी हुई सी; जारी है अभी गर्दिश-ए-पा सहमी हुई सी; दिल टूट तो जाता है पे गिर्या नहीं करता; क्या डर है के रहती है वफ़ा सहमी हुई सी; उठ जाए नज़र भूल के गर जानिब-ए-अफ़्लाक; होंटों से निकलती है दुआ सहमी हुई सी; हाँ हँस लो रफ़ीक़ो कभी देखी नहीं तुम ने; नम-नाक निगाहों में हया सहमी हुई सी; तक़सीर कोई हो तो सज़ा उम्र का रोना; मिट जाएँ वफ़ा में तो जज़ा सहमी हुई सी; है अर्श वहाँ आज मुहीत एक ख़ामोशी; जिस राह से गुज़री थी क़ज़ा सहमी हुई सी।

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