तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है; तेरे साथ तेरी याद आई क्या तू सचमुच आई है; शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का; मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है; उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास; जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है; हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है; हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है; एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ; वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है।

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