तेरे कमाल की हद... तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।

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