तेरे मिलने को... तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं; मगर ये लोग पागल हो गये हैं; बहारें लेके आये थे जहाँ तुम; वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं; यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती; कि दिल के हौसले शल हो गये हैं; कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल; कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं; निगाह-ए-यास को नींद आ रही है; मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं; उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना; यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं; जिन्हें हम देख कर जीते थे नासिर ; वो लोग आँखों से ओझल हो गये है।

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