दुश्मन भी पेश... दुश्मन भी पेश आए हैं दिलदार की तरह; नफरत मिली है उनसे मुझे प्यार की तरह; कैसे मिलेंगे चाहने वाले बताईये; दुनिया खड़ी है राह में दीवार की तरह; वो बेवफ़ाई करके भी शर्मिंदा ना हुए; सूली पे हम चढ़े हैं गुनहगार की तरह; तूफ़ान में मुझ को छोड़ कर वो लोग चल दिए; साहिल पर थे जो साथ में पतवार की तरह; चेहरे पर हादसों ने लिखीं वो इबारतें; पढ़ने लगा हर कोई मुझे अख़बार की तरह; दुश्मन भी हो गए हैं मसीहा सिफ़त जमाल; मिलते हैं टूट कर वो गले यार की तरह।

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