देख दिल को मेरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़; घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़; ग़ुल सदा वादी-ए-वहशत में रखूँगा बरपा; ऐ जुनूँ देख मेरे पाँव की ज़ंजीर न तोड़; देख टुक ग़ौर से आईना-ए-दिल को मेरे; इस में आता है नज़र आलम-ए-तस्वीर न तोड़; ताज-ए-ज़र के लिए क्यूँ शमा का सर काटे है; रिश्ता-ए-उल्फ़त-ए-परवाना को गुल-गीर न तोड़; अपने बिस्मिल से ये कहता था दम-ए-नज़ा वो शोख़; था जो कुछ अहद सो ओ आशिक़-ए-दिल-गीर न तोड़; सहम कर ऐ ज़फ़र उस शोख़ कमाँ-दार से कह; खींच कर देख मेरे सीने से तू तीर न तोड़।

Your Comment Comment Head Icon

Login