निकले हम कहाँ से निकले हम कहाँ से और किधर निकले; हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले; तु समझाया किया रो-रो के अपनी बात; तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले; बरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजार; जब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकले; अब संभले के चले ज़हर और सफ़र की सोच; ऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकले; तु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होता; पर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले।

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