फिर इस अंदाज़ से... फिर इस अंदाज़ से बहार आई; के हुये मेहर-ओ-माह तमाशाई; देखो ऐ सकिनान-ए-खित्ता-ए-ख़ाक; इस को कहते हैं आलम-आराई; के ज़मीं हो गई है सर ता सर; रूकश-ए-सतहे चर्ख़े मिनाई; सब्ज़े को जब कहीं जगह न मिली; बन गया रू-ए-आब पर काई; सब्ज़-ओ-गुल के देखने के लिये; चश्म-ए-नर्गिस को दी है बिनाई; है हवा में शराब की तासीर; बदानोशी है बाद पैमाई; क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी ग़ालिब ; शाह-ए-दीदार ने शिफ़ा पाई।

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