बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगा; महमिल-ए-दिल से निकल सर को हवा ताज़ा लगा; देख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीर; घर बनाता है तो सब से पहले दरवाज़ा लगा; हाँ समंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोच; डूबने से पहले गहराई का अंदाज़ा लगा; हर तरफ़ से आएगा तेरी सदाओं का जवाब; चुप के चंगुल से निकल और एक आवाज़ा लगा; सर उठा कर चलने की अब याद भी बाक़ी नहीं; मेरे झुकने से मेरी ज़िल्लत का अंदाज़ा लगा; रहम खा कर अर्श उस ने इस तरफ़ देखा मगर; ये भी दिल दे बैठने का मुझ को ख़मियाज़ा लगा।

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