बदन में आग... बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है; के ज़हरे-ग़म का नशा भी शराब जैसा है; कहाँ वो कुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे; तेरे फिराक का आलम भी ख्वाब जैसा है; इसे कभी कोई देखे कोई पढे तो सही; दिल आइना है तो चेहरा किताब जैसा है; फ़राज़ संगे-मलामत से ज़ख्म-ज़ख्म सही; हमें अज़ीज़ है खानाखाराब जैसा है।

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