बस एक बार किसी ने गले लगाया था; फिर उस के बाद न मैं था न मेरा साया था; गली में लोग भी थे मेरे उस के दुश्मन लोग; वो सब पे हँसता हुआ मेरे दिल में आया था; उस एक दश्त में सौ शहर हो गए आबाद; जहाँ किसी ने कभी कारवाँ लुटाया था; वो मुझ से अपना पता पूछने को आ निकले; कि जिन से मैं ने ख़ुद अपना सुराग़ पाया था; उसी ने रूप बदल कर जगा दिया आख़िर; जो ज़हर मुझ पे कभी नींद बन के छाया था; ज़फर की ख़ाक में है किस की हसरत-ए-तामीर; ख़याल-ओ-ख़्वाब में किस ने ये घर बनाया था।

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