बुझी नज़र तो करिश्मे भी... बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गये; कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये; करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला; यही है रस्म-ए-ज़माना तो हम भी अब के गये; मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना; ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये; अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये; ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये; गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा; गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये; तुम अपनी शम-ए-तमन्ना को रो रहे हो फ़राज़ ; इन आँधियों मे तो प्यार-ए-चिराग सब के गये।

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