बुलंदी देर तक... बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है; बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है; बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम निकल जाएँ; तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है; यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता; मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है; मोहब्बत में परखने जाँचने से फ़ायदा क्या है; कमी थोड़ी-बहुत हर एक के शजरे में रहती है; ये अपने आप को तक़्सीम कर लेता है सूबों में; ख़राबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में रहती है।

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