बेखुदी ले गयी कहाँ... बेखुदी ले गयी कहाँ हम को; देर से इंतज़ार है अपना; रोते फिरते हैं सारी-सारी रात; अब यही रोज़गार है अपना; दे के दिल हम जो हो गए मजबूर; इस में क्या इख्तियार है अपना; कुछ नही हम मिसाले-अनका लेक; शहर-शहर इश्तिहार है अपना; जिस को तुम आसमान कहते हो; सो दिलों का गुबार है अपना।

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