माने जो कोई बात तो एक बात बहुत है; सदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत है; दिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर एक बात; ऐसे में न जाओ कि अभी रात बहुत है; महीने में किसी रोज़ कहीं चाय के दो कप; इतना है अगर साथ तो फिर साथ बहुत है; रसमन ही सही तुमने चलो ख़ैरियत पूछी; इस दौर में अब इतनी मदारात बहुत है; दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम; कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है; फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे अना से; ऐ दोस्त अभी गर्मी-ए-हालात बहुत है।

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