मियाँ मैं शेर हूँ... मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती; मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती; मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था; मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जाती; जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा है; जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जाती; मोहब्बत का ये ज़ज्बा जब ख़ुदा की देन है भाई; तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जाती; वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगर; न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती।

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