मुझ से काफ़िर को तेरे इश्क़ ने... मुझ से काफ़िर को तेरे इश्क़ ने यूँ शरमाया; दिल तुझे देख के धड़का तो खुदा याद आया; मेरे दिल पे तो है अब तक तेरे ग़म का साया; लोग कहते हैं नया दौर नए दुख लाया; मेरा मियार-ए-वफ़ा ही मेरी मज़बूरी है; रुख बदल कर भी तुझे अपने मुक़ाबिल पाया; चारागर आज सितारों की क़सम खा के बता; किस ने इंसान को तबस्सुम के लिए तड़पाया; लोग हँसते तो इस सोच में खो जाता हूँ; मौज-ए-सैलाब ने फिर किसका घरौंदा ढाया; उसके अंदर कोई फनकार छुपा बैठा है; जानते-बुझते जिस शख्स ने धोखा खाया।

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