मुझ से पहली सी मोहब्बत... मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग; मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात; तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है; तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है; तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये; यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये; और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा; राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।

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