या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा... या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होता; या मेरा ताज गदाया न बनाया होता; ख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझे; काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता; नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझको; उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता; अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने; क्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होता; शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उसने; वरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता।

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