ये ठीक है कि... ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम; लेकिन ये क्या कि शहर तेरा छोड़ जाएँ हम; मुद्दत हुई है कूए बुताँ की तरफ़ गए; आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम; शायद बकैदे-जीस्त ये साअत न आ सके; तुम दास्ताने-शौक़ सुनो और सुनाएँ हम; उसके बगैर आज बहुत जी उदास है; जालिब चलो कहीं से उसे ढूँढ लायें हम।

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