रहने को सदा...रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई;तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई;एक बार तो खुद मौत भी घबरा गयी होगी;यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई;डरता हूँ कहीं खुश्क़ न हो जाए समुन्दर;राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई; साक़ी से गिला था तुम्हें मैख़ाने से शिकवा;अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई;माना कि उजालों ने तुम्हे दाग़ दिए थे;बे-रात ढले शम्मा बुझाता नहीं कोई।
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