लहू न हो तो क़लम... लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता; हमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ नहीं होता; जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा; किसी चिराग का अपना मकाँ नहीं होता; ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाई; कि मुझ से आज कोई बदगुमाँ नहीं होता; मैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगा; किसी चिराग के बस में धुआँ नहीं होता; वसीम सदियों की आँखों से देखिये मुझ को; वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता।

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