सोचा नहीं अच्छा बुरा... सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं; माँगा ख़ुदा से हर वक़्त तेरे सिवा कुछ भी नहीं; देखा तुझे चाहा तुझे सोचा तुझे पूजा तुझे; मेरी वफ़ा मेरी खता तेरी खता कुछ भी नहीं; जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर; भेजा वही कागज़ उसे हम ने लिखा कुछ भी नहीं; और एक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक; आँखों से भी बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं; दो-चार दिन की बात है दिल ख़ाक में मिल जायेगा; आग पर जब कागज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं।

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