हम ही में थी न कोई बात... हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके; तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके; तुम ही न सुन के अगर क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन; किस की ज़बान खुलेगी फिर हम न अगर सुना सके; होश में आ चुके थे हम जोश में आ चुके थे हम; बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके; रौनक़-ए-बज़्म बन गए लब पे हिकायतें रहीं; दिल में शिकायतें रहीं लब न मगर हिला सके; शौक़-ए-विसाल है यहाँ लब पे सवाल है यहाँ; किस की मजाल है यहाँ हम से नज़र मिला सके; अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल; कौन तेरी तरह हफ़ीज दर्द के गीत गा सके।

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