​वफ़ा के ख्वाब... वफ़ा के ख्वाब मुहब्बत का आसरा ले जा; अगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया है ले जा; मक़ाम-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ आ गया है फिर जानम; यह ज़ख़्म मेरे सही तु तीर उठा ले जा; यही है क़िस्मत-ए-सहारा यही करम तेरा; कि बूँद​-बूँद अदा कर घटा-घटा ले जा; गुरुर-ए-दोस्त से इतना भी दिलशिकस्ता ना हो; फिर उठ के सामने दामन-ए-इल्तजा ले जा; नादमतें हों तो सर बार-ए-दोष होता है; फ़र्ज़ जान के एवज़ आबरू बचा ले जा।

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