​​​हवा बन कर​​...​​​ हवा बन कर बिखरने से​;​ उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;​​​​​ मेरे जीने या मरने से​;​ उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;​​​ उसे तो अपनी खुशियों से​;​ ज़रा भी फुर्सत नहीं मिलती​;​​​ मेरे ग़म के उभरने से​;​ उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;​​​ उस शख्स की यादों में​;​ मैं चाहे रोते रहूँ लेकिन​;​​​ ​मेरे ऐसा करने से​;​ उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​। ​

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