आज बेटी नहीं बचाओगे तो कल माँ कहाँ से पाओगे
पलकों में पली साँसों में बसी माँ की आस है बेटी
हर पल मुस्काती गाती एक सुखद अहसास है बेटी
गहन अंधेरी रातों में जैसे भोर की उजली किरन है बेटी
सूने आँगन में खिली मासूम कली की सी मुस्कान है बेटी
मान अभिमान है बेटी दोनों कुलों की लाज है बेटी
दुख दर्द अंदर ही सहती एक खामोश आवाज़ है बेटी
तपित धरती पर सघन छाया सी शीतल हवा है बेटी
लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती सी बुजुर्गो की पावनदुआ है बेटी
करते विदा जब डोली में तब पराई हो जाती है बेटी
उदास मन सूना आँगन फिर बहुत याद आती है बेटी
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