अपनी आँखों को बनकर ये ज़ुबान,
कितने अफ़साने सुना लेते है,
जिनको जीना है मोहब्बत के लिए,
अपनी हस्ती को मिटा लेते है ..!
Er kasz
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अपनी आँखों को बनकर ये ज़ुबान,
कितने अफ़साने सुना लेते है,
जिनको जीना है मोहब्बत के लिए,
अपनी हस्ती को मिटा लेते है ..!
Er kasz
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