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गिलेसिकवे में उलझ कर रह गयी
गिलेसिकवे में उलझ कर रह गयी
गिले-सिकवे में उलझ कर रह गयी मौहब्बत अपनी
समझ में नही आता मौहब्बत चल रही थी या कोई मुकदमा
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उसके हाथ मेँ थे मेरे खत
किसी शायर से कभी उसकी उदासी
उसने पूछा क्या हाल है तुम्हारा
किसी न किसी पर किसी को
मुझे कुछ अफ़सोस नहीं के मेरे
"दुनिया बेताब है खूबसूरत चेहरों के
मेरी ख्वाबिन्दा उम्मीदों को जगाया क्यों
दर्द ऐ महोबत तो हमने भी
दिल मेँ बुराई रखने से बेहतर
आज फिर बैठा हूँ हिचकियों के
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