हम भटकते रहे थे अनजान राहों में; रात दिन काट रहे थे यूँ ही बस आहों में; अब तम्मना हुई है फिर से जीने की हमें; कुछ तो बात है सनम तेरी इस निगाहों में।
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हम भटकते रहे थे अनजान राहों में; रात दिन काट रहे थे यूँ ही बस आहों में; अब तम्मना हुई है फिर से जीने की हमें; कुछ तो बात है सनम तेरी इस निगाहों में।
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