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Taarif Shayari
ज़माना बन जाए कागज़ का; और
ज़माना बन जाए कागज़ का; और
ज़माना बन जाए कागज़ का; और समंदर हो जाए स्याही का; फिर भी कलम लिख नहीं सकती; दर्द तेरी जुदाई का।
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भूल जाने का हौसला ना हुआ;
आज कुछ कमी है तेरे बगैर;
जान मेरी तू क़त्ल कर दे
तन्हाई जब मुक़द्दर में लिखी है;
लम्हें जुदाई के बेकरार करते हैं;
तकदीर के काजी से मैं क्या
पलट कर भी ना देखो और
यदि विचार स्वादिष्ट हो और सोच
हमारी किस्मत हमें दगा दे गई;
धोखा दिया था जब तूने मुझे;
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