कितना चाहता हूँ तुझे यह मुझको पता नहीं; मगर तुम्हारे सिवा कोई और दिल में बसा नहीं; ज़माना दुश्मन हो गया चाहत का हमारी; जुदा हो गए फिर से यह मेरी खता नहीं।
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कितना चाहता हूँ तुझे यह मुझको पता नहीं; मगर तुम्हारे सिवा कोई और दिल में बसा नहीं; ज़माना दुश्मन हो गया चाहत का हमारी; जुदा हो गए फिर से यह मेरी खता नहीं।
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