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Taarif Shayari
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़ न कोई रुस्वाई मीर; दिन बहुत हो गए यारों ने कोई इनायत नहीं की।
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दुआ करना यारों जुदा हो रहे
टूट जाते हैं सभी रिश्ते मगर;
हो जुदाई का सबब कुछ भी
किसी को ये सोचकर साथ मत
बड़ी मुश्किल से बना हूँ टूट
जाती नहीं आँखों से सूरत तेरी;
दिल तो करता है जिंदगी को
ना वो आम रहे ना हम
क्या फर्क है दोस्ती और मोहब्बत
उसी तरह से हर इक ज़ख़्म
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