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Taarif Shayari
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़ न कोई रुस्वाई मीर; दिन बहुत हो गए यारों ने कोई इनायत नहीं की।
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लम्हें जुदाई को बेकरार करते हैं;
ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे
कैसे कहें कि आपके बिन यह
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