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Taarif Shayari
न हाथ थाम सके न पकड़
न हाथ थाम सके न पकड़
न हाथ थाम सके न पकड़ सके दामन;बहुत ही क़रीब से गुज़र कर बिछड़ गया कोई।
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अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता
चांदनी रातों में सारा जहां सोता
सब कुछ है मेरे पास बस
ऐ दिल तड़पना बंद कर अब
काश नासमझी में ही बीत जाती
क्या गज़ब है उसकी ख़ामोशी; मुझ
सुन लिया हम ने फैसला तेरा;
कोई रास्ता नहीं दुआ के सिवा;
जगाया उन्होंने ऐसा के अब तक
भूल जाने का हौसला ना हुआ;
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