नज़र नवाज़ नज़रों में ज़ी नहीं लगता; फ़िज़ा गई तो बहारों में ज़ी नहीं लगता; ना पूछ मुझसे तेरे ग़म में क्या गुजरती है; यही कहूंगा हज़ारों में ज़ी नहीं लगता।
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नज़र नवाज़ नज़रों में ज़ी नहीं लगता; फ़िज़ा गई तो बहारों में ज़ी नहीं लगता; ना पूछ मुझसे तेरे ग़म में क्या गुजरती है; यही कहूंगा हज़ारों में ज़ी नहीं लगता।
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