ले तो लूँ सोते में उसके पांव का बोसा मगर; ऐसी बातों से वो काफ़िर बदनुमा हो जाएगा।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो; ना जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।

चल रहे है जमाने में रिश्वतो के सिलसिले; तुम भी कुछ ले-दे कर मुझसे मोहब्बत कर लो​..

​उसके साथ जीने का इक मौका दे दे ऐ खुदा;​​ तेरे साथ तो हम मरने के बाद भी रह लेंगे​।

​अब मौत से कह दो कि हम से नाराज़गी खत्म कर ले; वो बदल गया है जिसके लिए हम ज़िंदा थे​।

दीदार की तलब हो तो नज़रे जमाये रखना ग़ालिब ; क्युकी नकाब हो या नसीब ... सरकता जरुर है।

​​हक़ से दे तो ​ नफरत​ ​ भी सर आंखों पर​। खैरात में तो तेरी मोहब्बत भी मंजूर नहीं।

मेरी आँखों में देख आ कर हसरतों के नक्श; ख़्वाबों में भी तेरे मिलने की फ़रियाद करते!

फ़ुर्सतें मिलें जब भी रंजिशें भुला देना; कौन जाने सांसोंं की मोहलतें कहाँ तक है।

हमें भी याद रखें जब लिखें तारीख गुलशन की; कि हमने भी लुटाया है चमन में आशियां अपना।

​ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले​;​ उसकी गली के बच्चे आपस में लड़ा दिए मैंने​।

देश मेरा क्या बाजार हो गया है
पकड़ता हूँ जो तिरंगा हाथ में लोग पूछते हैं कितने का है
Er kasz

वो एक पल ही काफी है जिसमे तुम शामिल हो; उस पल से ज्यादा तो ज़िंदगी की ख्वाहिश ही नहीं मुझे।

एक तमन्ना थी दील में कुछ कर गुजरने की
मोहब्बत क्या हुई सब दिल में ही रह गयी
एक मुसाफिर

बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो; चार किताबें पढ़कर वो भी हमारे जैसे हो जाएंगे।