वो पूछते हैं क्या नाम है मेरा…
मैंने कहा बस अपना कहकर पुकार लो…!

मेरे दिल से खेल तो रहे हो पर
ज़रा संभल के टूटा हुआ है कहीं लग ना जाए

मैंने तुझे शब्दों में महसूस किया है
लोग तो तस्वीर पसंद करते हैं

जो तालाबों पर चौकीदारी करते हैँ
वो समन्दरों पर राज नहीं कर सकते

तुम पढते हो इसलिए लिखता हूँ
वरना कलम से अपनी कुछ ख़ास दोस्ती नहीं

खुद ही मुस्कुरा रहे हो साहिब
पागल हो या मोहब्बत की शुरूआत हुई है

अब उस नासमझ को समझाना छोड़ दिया
अब उसकी नासमझी से भी प्यार हो गया

मैंने अपनी मौत की अफवाह उड़ाई थी,
दुश्मन भी कह उठे आदमी अच्छा था...!!!

वो मंदिर भी जाता है और मस्जिद भी
परेशान पति का कोई मज़हब नहीं होता

बड़ा आदमी वो हे
जो अपने पास बेठे व्यक्ति को छोटा मेहसूस ना होने दे

काश आंसुओ के साथ यादे भी बह जाती
तो एक दिन तस्सली से बैठ के रो लेते

ऐ दिल सोजा अब तेरी शायरी पढ़ने
वाली अब किसी और शायर की गजल बन गयी है

जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है

मै बहता पानी हूँ।।
तुम मेरा रास्ता बदल सकते हो,
मेरी मंज़िल नही।

जब भी मौका मिलेगा ना, तो ,, जिस्म पे नही सीधे घाव पर वार करुंगा..... ((मा कसम))