ये मंजिले मुझे रास आती नहीं ऐ रास्तो मुझे अपना हमसफ़र बना लो।

मुझे गुमान था कि चाहा बहुत सबने मुझे; मैं अज़ीज़ सबको था मगर ज़रूरत के लिए।

तहज़ीब में भी उसकी क्या ख़ूब अदा थी; नमक भी अदा किया तो ज़ख़्मों पर छिड़क कर।

तेरे शहर के कारीगर बड़े अजीब हैं ये खुसूस-ये-दिल; कांच की मरम्मत करते हैं पत्थर के औजारों से!

यह हम ही जानते हैं जुदाई के मोड़ पर; इस दिल का जो भी हाल तुझे देख कर हुआ।

मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर अख़्तर ; ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है।

मेरी हर बात को उल्टा वो समझ लेते हैं; अब के पूछा तो कह दूंगा कि हाल अच्छा है।

है किस्मत हमारी आसमान में चमकते सितारे जैसी; लोग अपनी तमन्ना के लिए हमारे टूटने का इंतज़ार करते हैं।

अक्सर सूखे हुए होंठों से ही होती हैं मीठी बातें; प्यास बुझ जाये तो अल्फ़ाज़ और इंसान दोनों बदल जाया करते हैं।

रास्ते में पत्थरों की कमी नहीं है; मन में टूटे सपनो की कमी नहीं है; चाहत है उनको अपना बनाने की मगर; मगर उनके पास अपनों की कमी नहीं है।

ना जाने कौन सी बात पर वो रूठ गयी है; मेरी सहने की हदें भी अब टूट गयी हैं; कहती थी जो कि कभी नहीं रूठेगी मुझसे; आज वो अपनी ही बातें भूल गयी है।

हमें उनसे कोई शिकायत नहीं; शायद हमारी ही किस्मत में चाहत नहीं; हमारी तक़दीर को लिख कर तो ऊपर वाला भी मुकर गया; पूछा जो हमने तो बोला यह मेरी लिखावट नहीं।

चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं; इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं; महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश; जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये हैं।

ना जाने यह नज़रें क्यों उदास रहती हैं; ना जाने इन्हे किसकी तलाश रहती है; जानती हैं यह कि वो किस्मत में नहीं; लेकिन फिर भी ना जाने क्यों उन्हें पाने की आस रखती हैं।

वो जो हममें तुममें क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो; वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो; वह जो लुत्फ़ मुझपे थे पेश्तर वह करम कि था मेरे हाल पर; मुझे सब है याद ज़रा-ज़रा तुम्हें याद हो कि न याद हो।