ख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगी; न अफ़्सून-ए-निगह समझा न अंदाज़-ए-नज़र जाना। शब्दार्थ: अफ़्सून-ए-निगह = नज़र का जादू

उतरा है मेरे दिल में कोई चाँद नगर से; अब खौफ ना कोई अंधेरों के सफ़र में; वो बात है तुझ में कोई तुझ सा नहीं है; काश कोई देखे तुझे मेरी नज़र से!

आपके दीदार को निकल आये हैं तारे; आपकी खुशबु से छा गई हैं बहारें; आपके साथ दिखते हैं कुछ ऐसे नज़ारे; कि चुप-चुप के चाँद भी बस आप ही को निहारे!

फ़क़त इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें; मैं तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयाँ तक देखूँ। अनुवाद: फ़क़त = सिर्फ हुस्न-ए-बयाँ = सुंदरता की परिभाषा

वो आपका पलके झुका के मुस्कुराना; वो आपका नजरें झुका के शर्मना; वैसे आपको पता है या नहीं हमें पता नहीं; पर इस दिल को मिल गया है उसका नज़राना।

अजीब था उनका अलविदा कहना
सुना कुछ नहीं और कहा कुछ भी नहीं
कुछ यूँ बर्बाद हुये उनकी मोहब्बत में

कि लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं

कितने खड़े हैं पैरें अपना दिखा के सीना; सीना चमक रहा है हीरे का ज्यूँ नगीना; आधे बदन पे है पानी आधे पे है पसीना; सर्वों का बह गोया कि इक करीना।

हम भटकते रहे थे अनजान राहों में; रात दिन काट रहे थे यूँ ही बस आहों में; अब तम्मना हुई है फिर से जीने की हमें; कुछ तो बात है सनम तेरी इस निगाहों में।

नज़रे न होती तो नज़ारा न होता; दुनिया में हसीनो का गुज़ारा न होता; हमसे यह मत कहो की दिल लगाना छोड़ दे; जा के खुदा से कहो कि हसीनो को बनाना छोड़ दे।

ना जाने कौन सा जादू है तेरी बाहों में; शराब सा नशा है तेरी निगाहों में; तेरी तलाश में तेरे मिलने की आस लिए; दुआऐं मॉगता फिरता हूँ मैं दरगाहों में।

आज इस एक नज़र पर मुझे मर जाने दो; उस ने लोगों बड़ी मुश्किल से इधर देखा है; क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ सच कहना; मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है।

तेरे हसीन तस्सवुर का आसरा लेकर; दुखों के काँटे में सारे समेट लेता हूँ; तुम्हारा नाम ही काफी है राहत-ए-जान को; जिससे ग़मों की तेज़ हवाओं को मोड़ देता हूँ।

अंदाज अपने देखते हैं आईने में वो; और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो; कल चौदहवीं की रात थी रात भर रहा चर्चा तेरा; कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा!

तेरी सादगी को निहारने का दिल करता है; तमाम उम्र तेरे नाम करने को दिल करता है; एक मुक़्क़मल शायरी है तू कुदरत की; तुझे ग़ज़ल बना कर जुबां पर लाने को दिल करता है।

डरता हूँ कहीं मैं पागल न बन जाऊँ; तीखी नज़र और सुनहरे रूप का कायल ना बन जाऊँ; अब बस भी कर ज़ालिम कुछ तो रहम खा मुझ पर; चली जा मेरी नज़रों से दूर कहीं मैं शायर ना बन जाऊं।