तुम्ही कहो की कौन सी मैं रोशनी कहूँ
नूरे अजल कहूँ की तुम्हें चांदनी कहूँ ॥
यारों से मुंह को फेरकर रुखसत हुआ था मैं
किससे दायरे गैर की अब बेबसी कहूँ ॥
अफसाना-ऐ-हयात मेरा पूछते है लोग
सौ-सौ कहानियाँ है मेरी कौन सी कहूँ ॥
दुनिया जफा शेर को अहले खिरद कहे
मैं क्यो किसी फरेब को दानिशाबरी कहूँ ॥
रहे वफा में पाँव से लिपटे गुबार को
तुम गंदगी कहे मैं इसे चांदनी कहूँ ॥
आ बैठ मेरे पास यारो के दरम्याँ
कब तक तुम्हें अब मियां अजनबी कहूँ ॥

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