हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते है
जैसे बच्चे भरे बाजार में खो जाते है ॥
मुस्तकिल जूझना यादों से बहुत मुशिकल है
रफ्ता-रफ्ता सभी घर-बार में खो जाते है ॥
इन सांसो की रफाकत पे भरोसा न करो
सब के सब मिट्टी के अम्बर में को जाते है ॥
मेरी खुद्दारी ने अहसान किया है मुझपर
वरना जो जाते है दरबार में खो जाते है ॥
कौन फिर ऐसे में तनकीद करेगा तुझपर
सब तेरे जुबा-वो-दस्तर में खो जाते है ॥
याद आया............

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