हर यार यार नहीं होता हर दोस्त वफादार नहीं होता
दिल आने की बात है वरना सात फेरो के बाद भी प्यार नहीं होता

मैंने छोड़ दिया है किस्मत पर यकीन करना
अगर लोग बदल सकते है तो किस्मत क्या चीज है

मुझे किसी के बदल जाने का गम नही
बस कोई था जिस पर खुद से ज्यादा भरोसा था

लोग समजते हे की में तुम्हारे हुस्न पे मरता हूँ , अगर तुम भी यही समजते हो तो सुनो ; जब हुस्न खोदो तब लौट आना !!

यु ही उम्मीद दिलाते है ज़माने वाले
कब लौटकर आते है जाने वाले

तलवार कि धार से ज्यादा हमारी जुबान चलति हें
मौत का ख्वाब क्या दिखाता हे वो तो खुद हमसे डरती हे

हम तो हँसते हैं दूसरो को"हंसाने की खातिर"..
दोस्तों
वरना "दिल पे ज़ख़्म" इतने हैं क रोया भी नहीं जाता

रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले लड़के की नजरें अचानक एक बुजुर्ग दंपति पर पड़ी
उसने देखा कि वो बुजुर्ग पति अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए चल रहा था
थोड़ी दूर जाकर वो दंपति एक खाली जगह देखकर बैठ गए
कपड़ो केपहनावे से वो गरीब ही लग रहे थे
तभी ट्रेन के आने के संकेत हुए और वो चाय वाला अपने काम में लग गया
शाम में जब वो चाय वाला वापिस स्टेशन पर आया तो देखाकि वो बुजुर्ग दंपति अभी भी उसी जगह बैठे हुए है
तभी वो उन्हें देखकर कुछ सोच में पड़ गया
देर रात तक जब चाय वाले ने उन बुजुर्ग दंपति को उसी जगह पर देखा तो वो उनके पास गया और उनसे पूछने लगा
बाबा आप सुबह से यहाँ क्या कर रहे है आपको जाना कहाँ है
बुजुर्ग पति ने अपना जेब से कागज का एक टुकड़ा निकालकर चाय वाले को दिया और कहा:-
बेटा हम दोनों में से किसी को पढ़ना नहीं आता इस कागज में मेरे बड़े बेटे का पता लिखा हुआ है
मेरे छोटे बेटे ने कहा था कि अगर भैया आपको लेने ना आ पाये तो किसी को भी ये पता बता देना आपको सही जगह पहुँचा देगा
चाय वाले ने उत्सुकतावश जब वो कागज खोला तो उसके होश उड़ गये उसकी आँखों से एकाएक आंसूओं की धारा बहने लगी
उस कागज में लिखा था कि कृपया इन दोनों को आपके शहर के
किसी वृध्दाश्रम में भर्ती करा दीजिए बहुत बहुत मेहरबानी होगी
दोस्तों धिक्कार है ऐसी संतान पर इसके बजाय तो बाँझ रह जाना अच्छा होता है

ना वो मिलती है, ना मैं रुकता हूँ;
पता नहीं रास्ता गलत है, या मंजिल!

सबको मालुम है की जिंदगी बेहाल है
फिर भी लोग पूछते है क्या हाल है

हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
हमारे शहर मैं पत्थर भी लाल होता है

मेरी काबिलियत को तुम क्या परखोगे ए गालिब
इतनी छोटी सी उमर मेँ ही लाखो दुश्मन बना रखे हैं

हम जिंदगी की भागदौड़ मे इतने लीन हो गए
पता ही नहीं चला गोलगप्पे कब 10 के तीन हो गए

तमाम उम्र इसी बात का गुरुर रहा मुझे
किसी ने मुझसे कहा था की हम तुम्हारे है

शायरों की महफ़िलों में हम इसलिए भी जाते हैं
हम से बिछड़ कर शायद वो भी शायर हो गयी हो